मध्यलोक में असंख्य द्वीप हैं| इन द्वीपों में अढ़ाई द्वीप है, जहाँ मनुयों का निवास है| अढाई द्वीप को ‘समय क्षेत्र’ भी कहा जाता है| अढ़ाई का अर्थ है – दो और आधा| मध्यलोक में अढ़ाई द्वीप तक ही मनुष्यों का निवास है, इसके बाहर नहीं| अढ़ाई द्वीप में तीन द्वीप समाविष्ट हैं –
1. जम्बूद्वीप,
2. धातकीखण्ड द्वीप,
3. पिष्करार्ध्द द्वीप|
इनमें जम्बूद्वीप और धातकीखण्ड द्वीप तो सम्पूर्ण द्वीप हैं किन्तु पुष्करवर द्वीप को आधा लिया गया है| पुष्करवर द्वीप के आधे भाग के बाद मानुषोत्तर पर्वत स्थित है जो सत्रह सौ इक्कीस योजन ऊँचा है| जहाँ तक मानुषोत्तर पर्वत है, वहाँ तक ही मनुष्य जन्म और मरण धारण कर सकता है, इससे आगे नहीं|
‘द्विर्धातकीखण्डे पुष्करार्धे च| प्राङ्मानुषोत्तरान् मनुष्या: |’
(तत्त्वार्थ सूत्र, अ.3, सूत्र 12 से 14)
जम्बूद्वीप के बारे में जम्बूद्वीप पाठ में बतायेंगे| धातकीखण्ड द्वीप और पुष्करार्ध्द द्वीप में भी जम्बूद्वीप की तरह अनेक पर्वत और क्षेत्र हैं किन्तु ये आकार में जम्बूद्वीप की अपेक्षा दुगुने हैं| इन द्वीपों में दो – दो मेरू पर्वत हैं, बारह – बारह वर्षधर पर्वत और चौदह – चौदह क्षेत्र हैं| इनकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है कि द्वीप और समुद्र एक – दूसरे से चारों ओर वेष्ठित हैं| जम्बूद्वीप लवण समुद्र से, लवण समुद्र धातकीखण्ड द्वीप से और धातकीखण्ड द्वीप कालोदधि समुद्र से और कालोदधि समुद्र पुष्करवर द्वीप के चारों ओर वेष्ठित है| पुष्करवर द्वीप में उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ मानुषोत्तर पर्वत है| यह पर्वत वलय आकार का है| यह पर्वत पुष्करवर द्वीप को दो भागों में विभक्त करता है – एक भाग, अंदर की ओर जो आठ लाख योजन का है| इसमें मानव जाति का निवास है| यह मनुष्य लोक की सीमा है| इसके आगे के द्वीपों और समुद्रों में मनुष्यों का निवास नहीं होता है| अढ़ाई द्वीप 45 लाख योजन चौड़ा है| यह गोलाकार रूप में है| इस द्वीप में जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन, धातकीखण्ड का विस्तार चार लाख योजन तथा पुष्करवार अर्ध्द – द्वीप का विस्तार आठ लाख योजन है| धातकीखण्ड के चारों ओर पद्मवरवेदिका युक्त ऊँची दीवार है| अढ़ाई द्वीप में पन्द्रह कर्मभूमियाँ है| यथा – जम्बूद्वीप की तीन, धातकीखण्ड की छह तथा पुष्करार्ध्द द्वीप की छह कर्मभूमियाँ| तीस भोग भूमियाँ हैं, यथा – जम्बूद्वीप की छह, धातकीखण्ड की बारह तथा पुष्करार्ध्द द्वीप की बारह तथा छप्पन अन्तर्द्वीप हैं एवं पाँच मेरू पर्वत हैं| इनके अतिरिक्त अनेक छोटे – बड़े द्वीप, पर्वत , नदियाँ, द्रह आदि अढ़ाई द्वीप के मानचित्र में जैसे बनाए गये हैं, वैसे ही हैं| इस अढ़ाई द्वीप में निरन्तर गतिमान करते सूर्य और चन्द्र की संख्या 132 – 132 है| जिनमें अर्ध्द – पुष्करवर द्वीप में 72 सूर्य और 72 ही चन्द्र हैं तथा धातकीखण्ड और कालोदधि समुद्र में क्रमश : 12- 12 तथा 42 – 42 सूर्य व चन्द्र हैं| जम्बूद्वीप और उसके लवण समुद्र में 2 – 2 तथा 4 – 4 सूर्य – चन्द्र निरन्तर गतिमान हैं|
आगमों में कहीं – कहीं यह उल्लेख आता है कि मनुष्य अढ़ाई द्वीप के बाहर भी आवागमन कर सकता है| ऐसे मनुष्य साधरण कोटि के नहीं होते हैं, विद्याधर एवं चारण मुनि ही नंदीश्वर द्वीप तक जा सकते हैं| ऐसे मनुष्य भी अढ़ाई द्वीप से बाहर जा सकते हैं जो देव द्वारा अपह्यत कर लिए जाते हैं| इस प्रकार सामान्यत : मनुष्य अढ़ाई द्वीप और उसके द्वीप समुद्रों तक ही जीवित है किन्तु तिर्थंच गति के जीव अढ़ाई द्वीप में तथा अढ़ाई द्वीप के बाहर द्वीप समुद्रों में भी पाए जाते हैं|