छह लेश्या

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लेश्या मन के अच्छे-बुरे विचार या भाव हैं | लेश्या का उद्गम कषाय और योग हैं | जहाँ इन दोनों का अभाव होता है, वहाँ लेश्या नहीं होती है | उदाहरणार्थ: चौदहवें गुणस्थान अयोगि केवली में और सिध्दों में कषाय और योग न होने से लेश्या नहीं होती है | कषायों की मंदता- तीव्रता के अनुसार जीवात्मा के भावों में परिणमन होता रहता है | जीवात्मा में यह परिणमन छह प्रकार से होता है, जिनमें तीन परिणमन शुभ होते है और तीन अशुभ होते हैं | इन लेश्याओं में पहली तीन लेश्याएँ अशुभ हैं और बाद की तीन शुभ है | अशुभ लेश्याएँ मनुष्य को दुर्गति तथा शुभ लेश्याएँ मनुष्य को सुगति में ले जाती हैं |

अशुभ लेश्याएँ

  1. कृष्ण लेश्या- पाँच आश्रव का सेवन करते वाला छ: काय हिंसक, आरम्भी, क्रूरता से जीव हिंसा करने वाले अजितेन्द्रिय जीव कृष्ण लेष्या वाले होते हैं | कृष्ण लेश्या वाले जीव में निकृष्टता की ही प्रधानता रहती है | इस लेश्या से युक्त जीव भाव क्रूर, निर्दयी, असंयमी व अविवेकी होते हैं| कृष्ण लेशी स्वार्थ के वशीभूत दूसरे के प्राणों का घात करता है| ऐसे मनुष्य के मन में मलीनता भरी होने के कारण उसका मुख मण्डल भी भयानक तथ क्रूरता से युक्त दिखाई देता है|
  2. नील लेश्य – यह लेश्य पहली लेश्या से अपेक्षाकृत कम अशुभ वाली कही गई है| इस लेश्या के जीव विषय वासनाओं से युक्त मायावी, कपटी, मृषावादी, निर्लज्ज, प्रमादी, इर्ष्यालु तथा स्वाद – लोलुप होते हैं|
  3. कापोत लेश्या – यह लेश्या पहली दो की अपेक्षा कम अशुभ वाली मानी गई है, क्योंकि इस लेश्या में मनुष्य के विचार इतने निकृष्ट नहीं हैं जितने कि पहले दो लेश्यायी मनुष्यों के हैं| इस लेश्या से प्रभावित मनुष्य वक्र स्वभावी, आरम्भमग्न, मिथ्या भाषा बोलने वाला तथा किसी भी कर्म में पाप नहीं मानने वाला होता है|

शुभ लेश्याएँ:

4.तेजोलेश्या – यह लेश्या उपर्युक्त तीनों लेश्याओं से श्रेष्ठ मानी गई है| इस लेश्या वाला जीव सरल स्वभावी, धार्मिक, माया रहित, चपलता रहित, कौतूडल रहित, दृढ़धर्मी, पाप से डरने वाला होता है|

5. पद्म लेश्या – यह लेश्या तेजोलेश्या से श्रेष्ठतर है | इस लेश्या वाला जीव मित भाषी, क्षमाशील, उपशांत, जितेन्द्रिय, व्रत – शील पालक व स्थिर होता है| उसमें कुशाग्रता व कुशलता अधिक रहती है| ऐसा मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को भी हानि नहीं पहुँचे, इसका ध्यान रखता है|

6. शुक्ल लेश्या – यहा लेश्या श्रेष्ठतम लेश्या कही गई है| इस लेश्या वाला जीव राग – द्वेष से रहित, समता से युक्त व आत्मा में लीन रहता है| धर्मशुक्ल ध्यानी, सराग संयमी, वीतराग संयमी, समिति गुप्ति युक्त, धर्म के फल की इच्छा रहिता होता है|

इस प्रकार पहले के तीन वाले संसारी जीव अपने अध्यवसाय व स्वभाव से अन्य प्राणियों को अधिकाधिक कष्ट व हानि पहुँचाते हैं| बाद के तीन लेश्या वालों का सवभाव उत्तरोत्तर शुभ और प्रशस्त शुभ होता जाता है| उनमें समस्त जीवों के प्रति मैत्री भाव बना रहता है|

लेश्या के समझने के लिए जैनागम में एक प्रसिध्द दृष्टान्त दिया गया है| वह इस प्रकार है – जामुन खाने की इच्छा से छह मनुष्यों की एक टोली बाग में पहुँची| वहाँ उन्हें जामुन का एक वृक्ष दिखाई दिया, जिस पर अनेक जामुन फल लगे हुए थे| इस वृक्ष को देखकर कृष्ण लेशी मनुष्य बोला – “ सबसे अच्छा तो यह है कि इस सम्पूर्ण वृक्ष को काट देते हैं| वृक्ष कटते ही हम सब जामुनों का सेवन भलीभाँति कर सकेंगे’| यह मनुष्य इतना व्यग्र और लालची है कि उसे अपनी क्षुधा मिटाने या स्वाद के लिए जामुन के इस वृक्ष को जो एकेन्द्रिय स्थावर जीव है, काटने के लिए तत्पर है | नील लेशी मनेष्य वृक्ष को काटने की अपेक्षा उसकी शाखाओं, जिनमें जामुन लगे हुये हैं, को काटने की बात कहता है | इसके विचार इतने कुटिल हैं कि वह वृक्ष के महत्त्वपूर्ण अंग , विशाल शाखाओं को काटना उचित समझता है | कापोत लेशी मनुष्य यह सोचता है कि बड़ी शाखाओं की अपेक्षा छोटी शाखाएँ काटना ही उपयुक्त रहेगा | जामुन हमें इन्हीं से प्राप्त हो जायेंगे | तेजो लेशी मनुष्य वृक्ष, शाखाओं आदि को काटने की अपेक्षा केवल जामुन के गुच्छों को ही तोड़ने की बात करता है| पद्म लेशी मनुष्य केवल जामुन को तोड़ने की बात करता है| शुक्ल लेशी मनुष्य वृक्ष को किसी भी प्रकार के नुकसान पहुँचाने की अपेक्षा जमीन में पड़े जामुनों को खाने पर बल देता है | ऐसे मनुष्य की सोच यह रहती है कि अपनी स्वार्थसिध्दि भी हो जाए और किसी को लेश मात्र भी कष्ट व हानि न पहुँचे|

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