चक्रवर्ती की नवनिधियाँ

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भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक चौबीस तीर्थंकर के समय में अनेक विभूतियाँ हुई हैं जो तिरेसठ शलाका पुरूषों से परिगणित हैं इनमें से एक विभूति चक्रवर्ती भी है| चौबीस तीर्थंकरों के काल में कुल बारह चक्रवर्ती का उल्लेख हुआ है| इनके नाम इस प्रकार हैं – 1. प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के काल के उनके ही पुत्र चक्रवर्ती भरत, 2.द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजितनाथ के काल के चक्रवर्ती सगर, 3-4. पन्द्रहवें तीर्थंकर भगवान धर्मनाथ और सौलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ के अन्तरकाल में चक्रवर्ती मधवा और चक्रवर्ती सनत्कुमार, 5-6-7. सोलहवें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ, सत्रहवें तीर्थंकर भगवान कुन्थुनाथ तथा अठारहवें तीर्थंकर भगवान अरनाथ| ये तीनों स्वयं तीर्थंकर और चक्रवर्ती दोनों थे| 8. अठारहवें तीर्थंकर भगवान अरनाथ व उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ के अन्तरकाल में चक्रवर्ती सुभौम, 9.उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ और बीसवें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत के अन्तरकाल में चक्रवर्ती पद्म, 10.बीसवें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत और इक्कीसवें तीर्थंकर भगवान नमिनाथ के अन्तरकाल में चक्रवर्ती हरिषेण, 11.इक्कीसवें तीर्थंकर भगवान नमिनाथ और बाईसवें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि के अन्तरकाल में चक्रवर्ती जयसेन, 12.बाईसवें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि व तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के अन्तरकाल में चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त|

इन बारह चक्रवतियों के पास नौ प्रकार की निधियाँ हैं| इनसे चक्रवर्ती मनोवांछित वस्तुएँ प्राप्त करते थे| चक्रवर्ती जब दिग्विजय कर लौटता है और गंगा नदी के पश्चिम तट पर अट्ठम तप करता है, उसके बाद उसे ये निधियाँ प्राप्त होती हैं| एक – एक निधि एक – एक हजार यक्षों से अधिष्ठित होती है| यह दस योजन लम्बाई वाली, नौ योजन चौड़ाई वाली तथा आठ योजना ऊँचाई वाली होती है| इनका मुखमण्डल वैडूर्य मणि के कपाट से ढके रहता है| चन्द्र, सूर्य के चिन्हों से चिन्हित तथा एक – सी आकार वाली ये निधियाँ स्वर्ण – रत्नों से सदा संवेष्ठित रहती हैं| इन निधियों के अधिष्ठायक पल्योपम आयु वाले नागकुमार जाति के देव होते हैं| ये नवनिधियाँ इस प्रकार हैं –

1.नैसर्प निधि – इस निधि की सहायता से चक्रवर्ती ग्राम – नगर – द्रोणमुख, मंडप आदि का सहज रूप में निर्माण कराते थे|

2.पांडुक निधि – यह निधि चक्रवर्तियों को मान, उन्मान और प्रमाण आदि का ज्ञान कराती है| धान्य और बीजों को उत्पन्न करने में भी सक्षम है|

3.पिंगल निधि – यह मनुष्यों व तिर्यञ्चों के सर्वविध आभूषणों की विधि का ज्ञान कराने वाली तथा उनके योग्य आमरण प्रदान करने वाली निधि है|

4.सर्वरत्न निधि – इससे माणिक्य, पद्मराग, वैडूर्य आदि बहुमूल्य रत्न प्राप्त किए जाते हैं|

5.महापद्म निधि – यह शुध्द व रंगीन वस्त्रों का उत्पादन करने वाली होती है|

6.काल निधि – यह वर्तमान, भूत व भविष्य तीनों काल का, कृषि आदि कर्मों का, कला और व्याकरण शास्त्रादि का सम्पूर्ण ज्ञान कराने वाली निधि है|

7.महाकाल निधि – यह सोना, चाँदी, मोती, प्रवाल तथा लोहा आदि खानें उत्पन्न कराने वाली निधि है|

8.माणव निधि – यह युध्दनीति और दण्डनीत आदि का तथा कवच, ढाल, तलवार आदि विभिन्न प्रकार के दिव्य आयुष्यों का परिज्ञान कराने वाली निधि है|

9.शंख निधि – यह अनेक प्रकार के वाद्य, नाट्य – नाटक आदि की विधि का समपूर्ण ज्ञान कराने वाली निधि है|

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