जीवन को अनुशासित बनाने के लिए व त्यागमयी वृत्तियों में दृढ़ता लाने के लिए प्रत्येक श्रावक को अपनी चर्या को नियमबध्द करने का विधान जैनागम में है| प्रतिदिन दैनिक कार्यों के नियम – संकल्प से पापास्रव रूकता है| इन व्रतों में वह यथाशक्ति कुछ मर्यादाएँ – परिमाण रखता है और धीरे – धीरे इन मर्यादाओं – परिमाणों को संक्षिप्त या कम करता जाता है| आचार्यां ने श्रावक के लेने योग्य चौदाह नियम बताए हैं| ये चौदाह नियम इस प्रकार हैं-
1.सचित्त मर्यादा – इसमें सचित पदार्थों के सेवन करने की दैनिक मर्यादा रखी जाती है| यह मर्यादा संख्या, तौल व नाप आदि के रूप में होती है| सचित पदार्थ वे हैं, जिनमें जीवराशि होती है| जैसे – अन्न, फल, शाक, – सब्जी, ठंडा पानी आदि| श्रावक नियम लेता है कि आज मैं अमुक नाप- तौल के अनुसार ही फल-सब्जी आदि सचित वस्तुओं को ग्रहण करूँगा, ठंडा पानी का सेवन नहीं करूँगा|
2.द्रव्य मर्यादा – द्रव्य की प्रतिदिन मर्यादा रखनी है| इसमें खाद्यान्न पदार्थों की संखया का निश्चय किया जाता है| श्रावक यह संकल्प लेता है कि आज मैं अमुक संख्या में अधिक खाद्य वस्तुओं का सेवन नहीं करूँगा| निश्चित संख्या से भोजन करूँगा|
3.विगय (विकृतिक) मर्यादा – प्रतिदिन घी, दूध, दही, तेल, गुड़, चीनी, आदि पाँच विगइयाँ (विकार पैदा करने करने वाले पदार्थ) में से अमुक का या सबका त्याग करता या मर्यादा रखता है| उदाहरण के लिए भोजन में घी का त्याग करना|
4.पण्णी (उपानह नियम) – उपानह अर्थात् जूते – चप्पल, मोजे, खड़ाऊँ आदि वस्तुओं की मर्यादा रखनी है| उदाहरणार्थ – श्रावक यह संकल्प लेता है कि आज मैं स्थानक जाऊँगा तो पैरों में चप्पल का प्रयोग नहीं करूँगा, नंगे पैर जाऊँगा|
5.वस्त्र मर्यादा – पहनने – ओढ़ने के वस्त्रों की दैनिक मर्यादा रखना| आज मैं अमुक संख्या में वस्त्रों को अपने शरीर पर धारण करूँगा, इससे अधिक संख्या में वस्त्रों को नहीं पहनूँगा|
6.ताम्बूल परिमाण – मुखवास के योग्य पदार्थों, पान – सुपारी आदि का दैनिक त्याग करना या परिमाण रखना|
7.कुसुम विधि – पुष्प, तेल, इत्र, क्रीम, पाउडर आदि सुगन्धित पदार्थों की दैंनिक मर्यादा रखना|
8.वाहन मर्यादा – रिक्शा, स्कूटर, कार, बस, ट्रेन आदि का दैनिक त्याग या मर्यादा का विधान है|
9.शयन नियम – शय्या, आसन आदि शयनीय उपकरणों का दैनिक त्याग या मर्यादा का विधान है|
10.विलेपन नियम – केसर, चन्दन, तेल आदि विलेपन पदार्थों का दैनिक त्याग या मर्यादा का विधान है|
11.बर्ह्मचार्य नियम – दिवा मैथुन का सर्वथा त्याग करना और रात्रि को अब्रह्म सेवन की मर्यादा रखना|
12.दिशा परिमाण – इसमें श्रावक दिशाओं में यातायात व अन्य जो भी प्रवृत्तियाँ की जाती हैं, उनकी मर्यादा रखता है|
13.स्नान नियम – इसमें श्रावक प्रतिदिन स्नान व जल की मर्यादा रखता है|
14.भक्त नियम – प्रतिदिन असन, पान, खादिम – इन चारों प्रकार के भोजन का परिमाण या मर्यादा रखना|
श्रावक इन चौदाह नियमों का प्रतिदिन पालन कर अपनी सांसारिक प्रवृत्तियों पर रोक लगाता है, जिससे वह अध्यात्म साधना में प्रवृत्त हो सके और अपने जीवन को सार्थ कर सके|