चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व होता है। इस दौरान साधु साध्वी एक ही स्थान पर रहकर धर्म आराधना एवं साधना करते हैं। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास वर्षावास पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2024 में जैन चातुर्मास पर्व दि. 17 जुलाई 2024 से प्रारम्भ होकर दि. 12 नवम्बर 2024 तक चलेगा।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय 
श्वेताम्बर स्थानकवासी संप्रदाय 
श्वेताम्बर तेरापंथ संप्रदाय 
दिगंबर संप्रदाय 
क्यों मनाया जाता है चातुर्मास पर्व?
जैन धर्म पूर्णतः अहिंसा पर आधारित है। जैन धर्म में जीवों के पूर्ण अहिंसा पर जोर दिया जाता है। जैन धर्म के अनुसार वर्षा ऋतु में अनेक प्रकार के कीड़े एवम सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते हैं, वे सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने- फ़िरने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है।
अतः इन जीवों को परेशानी ना हो और जैन साधुओं द्वारा हिंसा ना हो इसलिए चातुर्मास में जैन साधु साध्वी चार महीने एक ही स्थान पर रहकर धर्म आराधना, संयम साधना एवम जन जन के आत्म कल्याण हेतु प्रेरणा एवम प्रवचन देते हैं। इस दौरान जैन साधु तप एवम जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को विशेष महत्त्व देते हैं।
चातुर्मास पर्व का महत्व (Importance of Chaturmas Festival)
जैन धर्म के अनुयायी वर्ष भर पैदल चलकर भक्तों के बीच अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का विशेष ज्ञान बांटते हैं। चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख संवत्सरी महापर्व 8 दिवसीय पर्युषण पर्व आराधना के साथ मनाया जाता है।
जो जैन अनुयायी वर्ष भर में जैन धर्म की विशेष मान्यताओं का पालन नहीं कर पाते वह इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप -तप, मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं।
साथ ही चार महीने तक एक ही स्थान पर रहकर धर्म- ध्यान- साधना करने, प्रवचन देने आदि से कई युवाओं का मार्गदर्शन होता है। चातुर्मास स्वयं को समझने और अन्य प्राणियों को अभयदान देने का अवसर माना जाता है।