सामान्य तौर पर हम यह जानते हैं कि भगवान महावीर का संदेश है कि ‘जीओ और जीने दो’। अर्थात अपने जीवन से दूसरे किसी को कष्ट नहीं पहुँचे। लेकिन भगवान महावीर ने इससे आगे बढ़कर और कहा है कि अपने प्राणों की चिंता छोड़कर भी जीवों की रक्षा करने की आवश्यकता हो तो उसके लिए भी हम तत्पर रहे। जैन धर्म प्राणीमात्र की रक्षा का संदेश देता है। हमारे हर कार्य में प्राणी रक्षा का विवेक जरूर रहना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में लोगों में कोरोना महामारी का भय समाया हुआ है।
लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि भय कभी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। समाधान है ‘सावधानी और समझदारी’
किसी भी प्रकार की धर्म क्रिया को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है हर कार्य को सावधानी, यतना और विवेक से करने की। शुद्ध धर्म आराधना हमारे पुण्य को बढ़ाती है और सारे संकटों से बचाती है। कई लोगों को अभी व्यापार में भले ही समुचित लाभ नहीं हो रहा है लेकिन वे इस आपदा में धर्म के अधिक करीब आए और अपने अपने स्थान पर ही वे सरकारी नियमों का पालन करते हुए धर्म की आराधना कर रहे हैं।
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लोगों को संसार की पौद्गलिक नश्वरता का ज्ञान हो रहा है और नए नए लोग धर्म के प्रति श्रद्धावान बन रहे हैं।
सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, नियम, प्रत्याख्यान, तपाराधना में जुड़कर लोग अपने घर से भी धर्म की अच्छी आराधना कर सकते हैं और कर रहे हैं। जो एक बहुत ही सकारात्मक संकेत है। संसार में परिस्थितियाँ बदलती रहती है। जो व्यक्ति हर परिस्थिति में भी सद्धर्म से विचलित नहीं होते हैं उनके लिए तो आपदा भी सुअवसर बन जाती है। बस हमें वह कला आनी चाहिए।