मध्यलोक के असंख्य द्वीप समुद्रों के बीचोंबीच जम्बूद्वीप स्थित है| यह सबसे छोटा द्वीप है| इस द्वीप में जम्बू सुदर्शन नामक वृक्ष है इसके कारण यह जम्बूद्वीप कहलाता है| जम्बूद्वीप का आकार थाली के समान गोल है| यह पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक एक लाख योजन में फैला हुआ है|
जम्बूद्वीप के पूर्व – पश्चिम दिशा में छह वर्षधर पर्वत स्थित हैं| ये पर्वत एक वृत के जीवा के रूप में फैले हुए हैं| इनके नाम इस प्रकार हैं –
- चुल्ल हिमवंत पर्वत,
- महाहिमवंत पर्वत,
- निषध पर्वत,
- नीलवंत पर्वत,
- रूक्मी पर्वत,
- शिखरी पर्वत|
इन पर्वतों के कारण जम्बूद्वीप सात क्षेत्रों में बँटा हुआ है| इन क्षेत्रों की गणना इस प्रकार से की गई है –
- भरत क्षेत्र,
- हिमवंत क्षेत्र,
- हरिवर्ष क्षेत्र,
- महाविदेह क्षेत्र,
- रम्यक् क्षेत्र,
- हेरण्यवत क्षेत्र,
- ऐरवत क्षेत्र|
हम लोग जम्बूद्वीप के भारत क्षेत्र में निवास करते हैं| भरत क्षेत्र मेरू पर्वत की दक्षिण दिशा के सबसे नीचे तल भाग में स्थित है| इसका आकार अर्ध्द – चन्द्र के समान है| इसकी तीन दिशाओं – पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण में लवण समुद्र है जो दो लाख योजन में फैला हुआ है|
भरत क्षेत्र के उत्तर दिशा में चुल्ल हिमवंत पर्वत है| इस पर्वत से दो नदियाँ – गंगा और सिन्धु निकलकर सम्पूर्ण भरत क्षेत्र में प्रवाहित होती हुई पूर्व और पश्चिम दिशा में लवण समुद्र में जाकर गिरती हैं| चुल्ल हिमवंत पर्वत के समानन्तर वैताढ़्य पर्वत स्थित है| यह पर्वत भरत क्षेत्र को उत्तरार्ध और दक्षिणार्ध दो भागों में विभाजित किए हुए है| प्रत्येक भाग में तीन खण्ड हैं| इस प्रकार भरत क्षेत्र छह खण्डों में विभक्त हैं| जो सम्राट इन छह खण्डो को जीत लेता है, वह चक्रवर्ती सम्राट् कहलाता है| सिंधु व गंगा के पास वैताढ़्य पर्वत के नीचे पूर्व – पश्चिम में दो विशाल गुफाएँ हैं –
- तमिस्र गुफा, तथा
- खण्डप्रपाता गुफा|
वैताढ़्य पर्वत से उत्तर में चुल्ल हिमवंत पर्वत की तलहटी में ‘ऋषभकूट’ नाम का एक रमणीय लघु पर्वत है| भरत क्षेत्र का कुल विस्तार 526 योजन छह कला है, जो जम्बूद्वीप का 190 वाँ भाग है|
भरत क्षेत्र की भाँति अन्य क्षेत्रों की स्थिति इस प्रकार है – हिमवंत पर्वत के उत्तर दिशा में हिमवंत और हरिवर्ष क्षेत्र स्थित हैं| इन क्षेत्रों में क्रमश: रोहिताशां, रोहिता, हरिकान्ता तथा हरिसलिला नामक नदियाँ बहती हैं| इन क्षेत्रों में युगलिक मनुष्य निवास करते हैं|
हरिवर्ष क्षेत्र की उत्तर दिशा में महाविदेह क्षेत्र है| इस क्षेत्र में सीतोदा, सीता नामक नदियाँ बहती है| नीलवंत पर्वत की उत्तर दिशा में रम्यक् क्षेत्र है| इस क्षेत्र में नरकान्ता (नारीकान्त) नामक नदी बहती है| रूक्मी पर्वत के उत्तर में हैरण्यवत नामक क्षेत्र स्थित है| इसमें रूप्यकूला और सुवर्णकूला नामक नदियाँ बहती हैं|
शिखरी पर्वत के उत्तर दिशा में ऐरवत क्षेत्र है| इस में रक्ता और रक्तवती नदियाँ बहती हैं| जम्बूद्वीप के इन सात क्षेत्रों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है| यथा-
- कर्म भूमिक क्षेत्र – भरत, ऐरवत तथा महाविदेह क्षेत्र में एक – एक कर्मभूमि है|
- अकर्मभुमिक क्षेत्र – हेमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक् इन चार क्षेत्रों में एक – एक अकर्मभूमि या भोगभूमि है|
- अन्तर्द्वीप – जम्बूद्वीप में जो लघु हिमवंत पर्वत और शिखरी पर्वत हैं उनकी दाढ़ाओं पर अट्ठाईस – अट्ठाईस अन्तर्द्वीपों के होने का उल्लेख मिलता है| इस प्रकार जम्बूद्वीप में कुल छप्पन अन्तिर्द्वीप स्थित हैं| यहाँ मनुष्य युगलिक रूप में रहते हैं| ये अन्तर्द्वीप सात चतुष्कों में विभक्त हैं| भरत और ऐरवत क्षेत्र में कालचक्र घूमता रहता है| किन्तु महाविदेह क्षेत्र में सर्वदा एक ही काल रहता है, जिसे चतुर्थकाल कहा जाता है|
इस प्रकार जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति को जान लेने के उपारान्त हम यह समझ सकते हैं कि यहाँ मनुष्य कहाँ पर स्थित है, इसके साथ ही यह कल्पना कर सकते हैं| कि यह जम्बूद्वीप कहाँ, कैसा और किस प्रकार का है?